बिलासपुर से 30 एवं मस्तूरी से 13 किलोमीटर दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में स्थित मल्हार। दक्षिण कोसल की यह ऐतिहासिक एवं पावन नगरी कल्चुरी कालीन मंदिरों के लिये प्रसिद्ध हैं । मल्हार में कल्चुरी कालीन (900ई. से 1300ई.) पातालेष्वर मंदिर स्थित है । भूमिज शैली के बने इस मंदिर की आधार पीठिका 108 कोणों वाली हैं मंदिर के मण्डप का चबूतरा भूमि से लगभग 6 फुट ऊॅंचा हैं । मंदिर के प्रवेश द्वार एवं बाह्य – आंतरिक भागों में विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाएं अंकित है। पातालेष्वर जी का गर्भगृह एक तलघर की तरह है नीचे पहुॅंचने के लिये कुछ सीढ़ियां उतरनी पड़ती है। गर्भगृह में भगवान शिव की विलक्षण प्रतिमा गोमुखी आकार-प्रकार के सुंदरी काले चमकदार पत्थर वाली जलहरी के मध्य त्रिकोणाकृत में अवस्थित हैं, इस मूर्ति में जितना भी जल चढ़ाया जाये अंदर समाहित हो जाता हैं। एक विषेश प्रकोश्ठ में अवस्थित शिवलिंग पतालेश्वेर के नाम से प्रसिद्ध हैं ।
कल्चुरियों के शासन में एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के रूप में विख्यात था । हाल में खुदाई के दौरान पाये गये पुरावषेशों से वर्तमान में यह पुरातात्विक महत्व स्थल बन गया है । इस क्षेत्र में खुदाई के दौरान देऊर, डिंडेष्वरी, पातालेष्वरी, चतुर्भुजी विष्णु तथा अनेक बौद्ध और जैन सम्प्रदाय की मूर्तियों के अवशेष मिले हैं । खुदाई से प्राप्त चतुर्भजी विष्णु की प्रतिमा संभवतः दूसरी सदी की हैं । मंदिर के प्रवेष द्वार के स्तम्भ में गंगा -यमुना और षिव-पार्वती विवाह के प्रसंग उत्कीर्ण हैं । इसकी आधारीय सतह पर तराषे गये युद्वरत हाथियों का चित्रण बाहरी दीवारों तक किया गया है। यहां से प्राप्त अनेक भग्नावषेश ईसा पूर्व दूसरी षताब्दी के हैं।